प्रश्न :- “दिव्य मानव” का निर्माण कौन करता है ? यह अतिमहत्त्वपूर्ण विषय है । इसे प्रमाणों सहित विस्तार पूर्वक लिखें । आज के शिक्षा विशारद यह कहते हैं कि देश का निर्माण विद्यालय में होता है ।
उत्तरः- यह विषय गंभीर है। जिस प्रकार गंभीर है उसी प्रकार व्यापक है इसको जानना प्रत्येक व्यक्ति का तथा मानवमात्र का कर्तव्य है । इस को क्रमशः युक्ति प्रमाणों से आगे सिद्ध किया जायेगा ।
दिव्य मानव का निर्माण माता ही करती है ।
माता को पिता अपना बीज देकर सहयोग मात्र करता है । अपने बीज सहित शरीर का निर्माण तो केवल माता ही करती है । सन्तान की वाणी, मन, बुद्धि आत्मा का संस्कार भी माता ही करती हैं । मानव की वाणी, मन, बुद्धि को माता सुसंस्कृत करती है ।
माता के निर्माण करने में प्रमुख कुछ कारण :-
१. नारी के जन्म का विशेष कारण नर का निर्माण करना है । सामान्य लक्ष्य धर्मार्थकाममोक्ष हैं ।
२. सन्तान की इच्छा नारी में सहज है । इस कारण नर का निर्माण वह सहजता से करती है । सन्तान के प्रति अनिच्छा किसी नारी में देखने में नहीं आती है ।
३. शिशुओं की सेवा करने की उसमें स्वाभाविक रुचि होती है । इसलिये शिशु का ( नर का ) निर्माण करने में वही सक्षम है ।
४. नारी के पास नर को जन्म देने एवं निर्माण करने के साधन हैं। सेवा करने का समय रहता है निर्माण करने के लिये जितना अवकाश नारी के पास है उतना अवकाश नर के पास नहीं है । साधन सम्पन्न होने से वह नर को जन्म देती है और उसका निर्माण करती है । कर सकती है ।
५. नारी मृदुस्वभाव की होने से, सेवा करने की प्रवृत्ति से सम्पन्न होने से शिशु का निर्माण करने में सक्षम है । शिशु की चेष्टाओं से हानि होने पर दोषों पर दण्ड नहीं देती है । अथवा अल्प मात्रा में दण्ड देती है । दण्डित न करके क्षमा करने का स्वभाव नारी में ही है ।
६. नारी में ऐसी योग्यता सहज है जिसके आधार पर वह रातदिन शिशु की सेवा प्रसन्नता से करती है, बुरा नहीं मानती । शिशु के साथ मृदुता से व्यवहार करती है । न शिशु के साथ कठोर व्यवहार करती है, न उसको ऐसा करना आता है। शिशु के साथ नारी का व्यवहार ही अनुकूल है, नर का नहीं । नारी मृदु पद्धति से शिशुओं को पढ़ाती है । अतः आज भी विद्या विभाग में प्राथमिक कक्षाओं में पढाने वालों में नारियां ही अधिक दीखती हैं ।
७. सन्तान के प्रति नारी की सहिष्णुता अनुपम है । मानव को महामानव अथवा दिव्यमानव बनाने के लिये अपेक्षित सहिष्णुता माता ( नारी ) में ही मिलती है ।
८. सन्तान के प्रति नारी का प्रेम, अनुराग, अन्य किसी में नहीं मिलता है । उसके प्रति प्राण देती है । इत्यादि