नारी का महत्त्व


अथ नारीसर्गः
अथ प्रथमोल्लासः
अथ नारीमहत्त्वं वक्ष्यामः
अब नारीमहत्त्व को कहेंगे

चतुर्णामपि वर्णानां दारा रक्ष्यतमाः सदा || मनु || ८ | ३५९ ।।
चारों वर्णों की नारियां सदा सब से अधिक रक्षा के योग्य हैं।
नर श्रेष्ठवादी १ – प्रश्न :- आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में नर अधिक संख्या में होते हैं, नारियां न्यून, वेदज्ञ विद्वानों में, पण्डितो में, ग्रन्थकर्ताओं में शास्त्रार्थ कर्ताओं में, कवियों में, गायको में, क्षत्रियों में, राजाओं में, चिकित्सकों में, कृषकों में, भौतिक वैज्ञनिकों में, बलवान शरीर बलवर्धकों में, देशधर्मरक्षकों में, प्रचारकों में, योद्धाओं में स्वाश्रितों में नर अधिक मात्रा में होते हैं और नारियां न्यून | इससे सिद्ध होता है कि नारी की अपेक्षा नर अधिक उन्नत गुणवान् समाज के उपयोगी और मान्य होता है | समाज के लिये अधिक देन दे सकता है
नारी श्रेष्ठवादी का उत्तर :- नारी का प्रधान कर्तव्य, कष्टों को सहते हुवे तप, त्याग, करते हुवे सन्तान को जन्म देना और महापुरुष बनाना है । उस के लिये अपनी सारी शक्तियों को अर्पित करना, गर्भधारण करना, गर्भ में अपने रस का दो तिहाई रस को भ्रूण को देना, शिशु को द्वितीय जन्मरूपी जन्म देना, मल, मूत्र उठाना, स्नान कराना, रात दिन खिलाना – सात्म्य = सब प्रकार से शिशु के लिये अनुकूल अपना दूध पिलाना, साथ रखना, चिकित्सा करना, कराना उसके लिये अपना स्वाध्याय, सन्ध्या, यज्ञ, व्यायाम, स्वास्थ्य को, सुख सुविधा को गौण बनाना अथवा छोडना, शरीर को निर्बल बनाना, अपनी उन्नति को गौण बनाना अथवा छोडना अपने जीवन को गौण बनाना सन्तान के लिये प्राण देना आदि नारी ही करती है, कर सकती है नर नहीं । मानव समाज को देने के लिये यह देन नारी के पास ही है नर के पास नहीं हैं ।
परमेश्वर ने नारी को मोक्षगामी बनने के लिये यन्न करती हुई, श्रेष्ठ मानवों का निर्माण करती हुई, वंश परम्परा चलाने और सृष्टिप्रवाह को अखण्डित बनाने के लिये बनाया है । इन कार्यों को नारी ही कर सकती है नर नहीं । नर श्रेष्ठवादी २ – प्रश्न :- यन्त्रों का निर्माण द्वारा, उनके द्वारा व्यापार करके धनार्जन द्वारा, शस्त्रास्त्र युक्त होकर युद्ध करके देश की रक्षा द्वारा, भौतिक विज्ञान का आविष्कार द्वारा स्वयं अपना रक्षक आप होकर कार्य करके

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